Daughter Property Rights In India: पिता की संपत्ति में बेटी के हिस्से को लेकर Highcourt का बेमिसाल फैसला

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Daughter Property Rights In India

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Delhi High Court: पिता की संपत्ति में अब बेटी के अधिकारों को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में साफ़ कर दिया है – कि बेटी को पिता की सम्पति में कितना हिस्सा है। हाई कोर्ट ने बहन भाई के प्रॉपर्टी विवाद को लेकर यह अहम् फैसला सुनाया है जो आपको जरुर जानना चाहिए।

Daughter Property Rights In India

दिल्ली कोर्ट ने भाई बहन प्रॉपर्टी विवाद को लेकर बेमिसाल फैसला सुनाया है कि जिस घर में “अगर बेटी बड़ी होगी-वही घर की कर्ता धर्ता होगी” और “मुखिया की गैर मौजूदगी में घर में जो सबसे बड़ा होगा (चाहे वह लड़का है या फिर लड़की) वही घर का कर्ता होगा। हाई कोर्ट ने “कर्ता” मतलब “मुखिया” शब्द का इस्तेमाल किया है।

बेटी को बराबर का हक़

जस्टिस नाज़मी वजीरी ने समाज में बदलाव का फैसला सुनाया है। एक रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट के आदेश, यदि पहले पैदा होने पर कोई लड़का (पुरुष) मुखिया के कामकाज संभालता सके तो ठीक ऐसा ही लड़की (महिला) भी कर सकती है। “हिन्दू संयुक्त परिवार” की किसी महिला को ऐसा करने से रोकने वाला किसी भी तरह का कानून नहीं है।

पुरुष सत्ता पर चोट करने वाला फैसला

अदालत ने यह भी माना  कि मुखिया की भूमिका निभाने में पुरुषो के जिम्मे बड़े-बड़े काम आते है। रिति-रिवाज, मान्यताओं और प्रॉपर्टी से लेकर परिवार के अहम और जटिल मुद्दों पर भी अपने फैसले लागे करने लगते है। इस लिहाज से यह फैसला पितृसत्तातमक सोच एवं समाज की उस धरा पर चोट करते हुए उसे तोड़ने वाला है।

 

बड़ी बेटी ने चचेरे भाई पर किया था केस

Daughter Property Rights In India को लेकर हाई कोर्ट ने ये फैसला, दिल्ली के एक व्यापारी परिवार की बड़ी बेटी की और से दाखिल केस पर सुनाया है। बेटी ने, पिता और 3 चाचाओ की मृत्यु के बाद केस दायर कर दावा किया कि वह घर की बड़ी बेटी है और इस कारण मुखिया वही हो। उसने याचिकाओं में अपने बड़े चचेरे भाई के इस दावे को चुनौती दी, जिसने खुद को कर्ता घोषित कर दिया।

क्यों अहम है ऐसा फैसला?

2005 में, Daughter Property Rights In India हिन्दू सेक्शन एक्ट,  संशोधन कर धारा 6 जोड़ी थी। जिसके जरिये महिलाओ को पैतृक संपत्ति में बराबर का हक़ दिया गया, लेकिन घर के फैसले करने का हक़ अब जाकर मिला।

फैसले के बाद अब बड़ी बेटी के हाथ में न सिर्फ पैतृक संपत्ति व् प्रॉपर्टी से जुड़े हक़ होंगे बल्कि, घर परिवार के तमाम मुद्दों पर अपनी बात क़ानूनी हक़ से रख सकती है।

यह फैसला समाज में बदलाव का प्रतीक है, एक मिसाल है जो बताता है कि बेटी पिता को कन्धा दे सकती है, वो पिता की भूमिका में भी हो सकती है और किसी बेटे से कम नहीं है।

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“आत्मनिर्भरता की मिसाल है औरत”

कानून के मुताबिक सभी को समान अधिकार है। फिर न जाने क्यों अभी तक महिला को कर्ता बनने लायक नहीं समझा? महिलाये आजकल हर क्षेत्र में कदम मिला कर चल रही है और आत्मनिर्भर बन रही है। 1956 का पुराण कानून 2005 में बदल चूका है।  अब कानून बराबरी का हक़ देता है और अदालतों को सतर्कता के साथ फैसला सुनना चाहिए।

बेटी को इस स्तिथि में नहीं मिलेगा हिस्सा

पिता की कमाई संपत्ति के मामले में बेटी का पक्ष अक्सर कमजोर होता है। पिता ने अगर अपने पैसे से प्रॉपर्टी खरीदी, मकान खरीदा या बनवाया तो वह जिसे चाहे उसे यह प्रॉपर्टी दे सकता है। सव्अर्जित  संपत्ति को अपनी मर्जी से क़ानूनी तोर पर पिता किसी को भी दे सकता है। मतलब कि- “अगर पिता, बेटी को खुद की संपत्ति में हिस्सा देने से मना कर रहा है तो बेटी हिस्सेदारी का दवा नहीं कर सकती”

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शादी के बाद पिता की सम्पति में बेटी का अधिकार

साल 2005 में पहले हिन्दू उत्तराधिकारी कानून, में बेटियां सिर्फ हिन्दू अविभाज्य परिवार की सदस्य मानी जाती रही  हमवारिस मतलब – प्रॉपर्टी में समान अधिकार नहीं। आसान शब्दों में, हमवारिस या समान उत्तरधिकारी वह होते/होती है जिनके अपने से पहले की 4 पीढ़ी की अविभाजित सम्पतियों पर हक़ होता है।

हालाँकि, हिन्दू अविभाजित परिवार के अंतर्गत, अगर बेटी का विवाह हो गया तो उसे हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF)की हिस्सा नही माना जाता। 2005 के संशोधन के बाद बेटी को हमवारिस प्रॉपर्टी में समान उत्तराधिकार माना गया। बेटी के विवाह से अब पिता की संपत्ति पर उसके अधिकार में कोई बदलाव नहीं आता। मतलब कि, शादी के बाद भी बेटी का पिता की सम्पति पर अधिकार है और वह चाहे हो अपना हिस्सा ले सकती है।

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